तुम,
कैसी हो? अच्छी ही होंगी, मुझसे दूर जो हो।
'तुम' से इस पाती को शुरू करने के लिये माफ़ी चाहता हूँ, समझ नहीं आया कि क्या लिखूँ तुम्हारे लिये.. प्रिये बोलने का हक़ मुझे रहा नहीं, नाम लेकर बदनाम कर दूँ, इतना अभी गिरा नहीं।
आज तुम्हारी गली से गुज़र रहा था। तुम्हारा घर दिखा, वहां खड़ी तुम्हारी परछाई भी दिख गयी। बहुत कमज़ोर लगी तुम्हारी परछाई और कुछ उदास भी..................
(पूरी पाती/चिट्ठी कैप्शन में पढ़ें, असुविधा के लिए खेद है)
- साकेत गर्ग
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