QUOTES ON #पाँव

#पाँव quotes

Trending | Latest
6 OCT 2019 AT 11:33

काँटे चलकर नहीं आते पाँव तले
ये उन्हीं को चुभते हैं
जो घर से निकले हो कुछ करने की चाहत में

-


3 FEB 2019 AT 20:05

शहर में बसने वाला गाँव हूँ मैं
काँटों पे चलने वाला पाँव हूँ मैं
यूँ ही आग नहीं है मेरे शब्दों में
धूप में जलने वाली छाँव हूँ मैं

-


18 SEP 2018 AT 8:59

जब पड़ते हैं तेरी यादों के पाँव
मेरे मन के आँगन में
बिखर जाते हैं सारे शब्द
चावल के दानों से

-


19 JAN 2017 AT 1:36

जब पहली बार मैंने
पिता के जूतों में पाँव डाले थे
उस दिन पता चला
कि उनके पाँव में कितने छाले थे।

-


12 JUL 2017 AT 19:02

समर्पण ही किया था मैंने,
वो कोई शरणागति नहीं थी...
मुझे तो चाहिए था सात जनमों का साथी
तुम्हें तो दिन में कामवाली और रात को बाहोंमे आनेवाली की तलाश थी...
मैंने अपने पैर पर खडा होना चाहा
पर तुमने इनाम दिए वह बेल्ट के निशान
अपाहिज बना गए मेरे पैर....
मैंने सिर उंचा कर जीना चाहा
तब तुमने गर्दन मरोड़ सिर झुकाया मेरा...
शादी के वक्त हाथ-पाँव मेहंदी से सजे थे
तुने मांग मे सिंदूर सजाकर
जख्म से जिस्म सजाने का हक ही पा लिया...
यूं तो बाहर दुनिया से डरने वाले कायर तुम
कमरे के अंदर मर्दानगी बहुत दिखाते हो...
तुम्हारी हर फटकार मे
प्यार की उम्मीद ढुंढती रही मैं...
पर अब बस...
तूने समझा होगा काँच की गुडिया
पर खुद्दारी के लोहे से बनी मूरत हूँ...
जो आज भी कहती हैं तडप तडप कर,
ये समर्पण हैं मेरा,
इसे शरणागति समझने की भूल न करना...

-


6 JUL 2020 AT 10:35

मोहब्बत के
काफिले को
कुछ देर तो
रोक लो,
आते हैं !
हम भी पाँव से 
कांटे निकाल कर.

-


14 APR 2019 AT 9:00

जिनके पाँव से काँटे निकाले मैंने
आज उनकी राह का काँटा हो गया

-


7 APR 2018 AT 21:58

ठूँठ होते पेड़ की कहानी लिख रहा हूँ मैं
वीरान होते गाँव की कहानी लिख रहा हूँ मैं
सूखते कुँओं की कहानी लिख रहा हूँ मैं
धूप में जलते छाँव की कहानी लिख रहा हूँ मैं

बूढ़ी होती निगाहों की कहानी लिख रहा हूँ मैं
सिसकते हुए राहों की कहानी लिख रहा हूँ मैं
सूने होते पनघट की कहानी लिख रहा हूँ मैं
शहर को चलते पाँव की कहानी लिख रहा हूँ मैं

-


1 AUG 2017 AT 19:19

जाना चाहता हूँ उल्टे पाँव
खोए हुए हमारे गाँवों में...
बट गए लोग सिमेंट कांक्रीट की बेजान दीवारों में
जीते थे इक वक्त कभी खुले आसमान की पनाहों मे
उजाड़ दिए खेत खलिहान शहर बसाने के कामों में...
कट गए वो तरुमित्र सारे खेले थे जिनकी बाहों में...
खुले थे आंगन हमारे, खुलापन भी था दिलों में...
बंद हो गई भावनाओं की खिडकियां बंद हुए दरवाजों मे...
घट गया दायरा अब इन बढ़ते हुए आयामों में...
लगे हैं धोती वाले गांव को सूटबूट पहनाने के कामों में...
खोए हुए हैं हम आज भी कीर्तन की भक्तिमयी उन रातों में...
नींद चैन सब खो बैठे अब रातों के भूतों की बारातों मे....
साथ देती थी ये हवाएं भी सुनसान एकांत भरी राहो मे...
जी रहे हैं अब तो हम भीडभाड वाली तनहाइयों में....
सोचता हूँ मैं भाया कहाँ गया वह गांव मेरा बसता है जो यादों में...
आदत डालनी पड रही है अब जीने की इन फरियादों मे...
जाना चाहता हूँ उल्टे पाँव
खोए हुए हमारे गाँवों मे...

-


11 MAY 2018 AT 6:34

गर्मियों में चादर से ज्यादा पाँव पसारा जा सकता है

-