QUOTES ON #पर्यावरण

#पर्यावरण quotes

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29 MAY 2020 AT 20:49

आसाम दिहिंग पटकाई प्राकृतिक सौंदर्य से भरी पूरी है
माना कोयला मजबूरी है, पर पर्यावरण रक्षा बहुत जरूरी है

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29 JUL 2018 AT 10:38

पौधारोपण जो किया था तुमने
उसे सहेज कर रखा है क्या ?
किस हाल में है, हरा या सूख गया
जाकर दोबारा देखा है क्या ?

नन्हें पौधे को जन्म देकर जमीं में
उसका पालन पोषण किया था क्या ?
देकर जन्म तुम्हारे वालिदैन ने तुम्हे,
किस्मत सहारे छोड़ा था क्या ?

सघन छाया,पक्षियों को पनाह,उम्र भर हवा देता
उसके होश सम्भालने तक,सम्भाल नहीं सकते थे क्या ?
धूप में मर गया,सूख गया,सिर्फ लापरवाही से
दो बूंद पानी भी नही पिला सकते थे क्या ?

फोटो खींच, हीरो बन, सिर्फ सोशल मीडिया पर शोर मचाकर,
ऐसे पर्यावरण का सुधार करोगे क्या ?
पेड़ काटकर,पानी बहाकर,धुंआ फैलाकर
आने वाली नस्लों को तबाह करोगे क्या ?

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"पर्यावरण"
हरा भरा हो जीवन सबका
स्वस्थ रहे संसार।।

(अनुशीर्षक में पढ़ें)
अवनि...✍️




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29 MAR 2019 AT 12:39

बड़ी मासूम सी है ये ज़िन्दगी मेरी
शहर में रहूँ और गांव भी चाहिए

बस बैठा रहूँ ऊँची इमारतों में मैं
पेड़ों को काटूं और छाँव भी चाहिए।

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5 JUN 2021 AT 11:27

तप रहा है बदन तो ढूंढ रहे हो दरख़्त का साया
भूल गए जाड़े में तुमने ही तो शजर को जलाया
(CAption पढ़ें👇👇)

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20 MAY 2018 AT 12:19

ऐशो-आराम के लालच में बड़ी भूल कर बैठा
बादल की चाह थी आसमान में धूल कर बैठा।

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26 OCT 2019 AT 20:44

दियों की दीवाली
साथ अपनोंको मिलानेवाली
पर्यावरणपूरक मनानेपर लाए
जीवन में खुशहाली

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3 OCT 2019 AT 7:07

त्राहि - त्राहि सब पंछी करते, सब ताल- तलैये सूख गए,
पेड़ों की अंधा धुंध कटाई से, हर प्राणी इस जग के रो रहे।
बारिश की आस में धरती पलकें बिछाए रह जाती है,
बूंद बूंद पानी को तरसे ऐसी हालात क्यों हो आती है?
पंछियों के मधुर कलरव अब जाने कहां गुम हो गई है,
वो रंग- विरंगे तितलियों की टोली आंखो से ओझल हो गई है।
बाढ़ ढ़ाने लगी है कहर अपना, किसानों को प्रतिवर्ष रुला कर जाती है,
हिमनद पिघलते दावानल में, जनजीवन अस्त - व्यस्त हो जाती है।
कूड़े - कर्कट के ढ़ेर शुद्ध सांस भी न लेने देती है,
प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग जीना दूभर कर देती है।
हाहाकार है समस्त भू भाग में,प्रकृति भी घबराई है,
पूछ रही है मनु पुत्रों से कैसी ये विपदा आयी है?
धरती,पानी बिन हवा के तुम कैसे रह पाओगे?
सोचो न हो गर वृक्ष धरा पर, सांस कैसे ले पाओगे?
पर्यावरण के इस कदर दोहन से हे मानव तुम एकदिन पछताओगे,
जो रखनी हो सबको स्वस्थ यहां तो लो संकल्प कि एक वृक्ष प्रतिवर्ष लगाओगे।।

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5 JUN 2020 AT 10:20

'पर्यावरण'

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18 MAY 2021 AT 19:40

मधुर शांत हवाओं को
जब भाती नहीं कोई बात
चुभ जाते हैं पर्यावरण के
बिगड़ते हुए हालात
फुंफकार उठती है नागिन की तरह
वह बनकर चक्रवात
पहाड़ों को बुहार देगी
समंदर की लहरों को उछाल देगी
कोई मार्ग में आए उसके
तो उसे जड़ों से उखाड़ देगी
उड़ते गर्द और गुबार
हैं उसके क्रोध का परिणाम
कोई नहीं ऐसा
जो लगा सके उसपर पूर्ण विराम
एक फूँक से उड़ा देती है सबकुछ
मानो हो सूखे पात
फुंफकार उठती है नागिन की तरह
वह बनकर चक्रवात

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