ना काफ़ी रही पाक मुहब्बत उसको
अलाव अंक का चाहे प्रेम आज का
खतावार रहीं , रहीं बीती सदी की वो
मन के बदले तन चाहे प्रेम आज का
साँझ- सुबह में भेद करे ना , ना जानी
सिर्फ़ नादानी ही नादानी प्रेम आज का
कि बादल पसंद थे उसको , बेहद
गिरी गाज समझ आया प्रेम आज का
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