पहना हुआ सभी ने यहाँ, एक लिबास है
पत्थर को पूजें आदमी, ये कम क्या बात है।
दुनिया सभी की हो गई, रंगीं मिज़ाज है
काबा में सिमटे काशी, ये कम क्या बात है।
वालिद जो हैं ख़ुदा का घर, मक्का है मदीना
बेटे के झेले तेवर, ये कम क्या बात है।
पलछिन ख़ुशी के लिए, तोड़े दायरे हज़ार
बेटी उतारे ज़ेवर, ये कम क्या बात है
चादर चढ़ाए कितने दीये, आरती और फूल
फिर भी मिला खुदा न, ये कम क्या बात है।
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