कितना अजीब सा शब्द है ना "पता नहीं"... कभी बांधता है तो कभी सब कुछ छूटता हुआ सा एहसास कराता है.. सारी बातें कह लेने के बाद पता नहीं कहना जैसे खुद ही समझ लेना है.. या फिर पता नहीं कहकर बहुत से सवाल खड़े कर लेना है.. जैसे कुछ छुपाने की कशिश तो कभी कुछ बताने की कशिश.. कहीं झुँझलाहट की कशिश तो कभी उलझे भावों की तपिश... "पता नहीं" ना...!!
एकतरफ़ा इश्क़ होना , कोई खता नहीं इस इश्क़ में दर्द-ओ-गम , कोई सज़ा नहीं दिल , चैन , जिस्म-ओ-जाँ गवाँ के बैठे है हमें इश्क़ है उनसे और उन्हें ये तक पता नहीं
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