आवारा सा वो बादल पानी भर कर उड़ रहा था बरसना चाहता था मतवाला होकर चल रहा था शायद मयख़ाने से आया था दूर कहीं जाना था किसी हसीन लबालब नदी से मिलना चाहता था
उड़ते-चलते जा टकराया उस निर्दोष चाँद से जो खोया था किसी के दीदार में
संभवतः दुनिया में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जिसका चरित्र बिलकुल निर्दोष या निष्कलंक हो, फिर भी हम अपने विचार या उद्देश्य के पूर्ति के लिए गलत को सही कहना शायद ठीक नहीं।