एक ही आसमां के नीचे,
अलग-अलग शहरों की मिट्टी पर,
बारिश की वो बूंदें,
कुछ तुम पर और कुछ मुझ पर पड़ जाती हैं ।
पर तुम्हारी हथेली पर गिरने वाली बूंदें,
थोड़ी शरारती हैं,
इठलाती हैं तुम्हारी तरह,
तुम्हारी हथेली पर नाचती हैं,
और फ़िज़ा के कान में कुछ कह जाती हैं ।
वह फ़िज़ा, शांत पड़े मेरी हथेली में बने
बूंदों के उस चुल्लू से तालाब को
तुम्हारा पता बता देती हैं ।
देखो, आज मेरी हथेली में
तुम्हारी छुई बारिश नाच रही है ।
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