वसुधा(धरती)
कहीं हूं बंजर, कहीं हूं हरियाली..
कहीं संभाले पानी को,
तो कहीं जंगल का बोझ मुझपर भारी..
बहुत इमारतों की नींव हूं मैं,
बहुत किसानों की आस हूं मैं..
कभी किसीकी मंजिल,
तो कभी किसी भटके की राह हूं मैं..
ना रहने का ठिकाना, ना सर पर छत है..
एेसे ख़ानाबदोशो की खाट हुं मैं..
गिरना है मुझमें, संभलना है मुझमें..
छोड़ देंगी जब सांसे साथ, तो समां जाना है मुझमें..
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