दफ़्तर में बैठे बैठे सोच में डूबी वो
समन्दर में विचार के तल्लीन थी
दफ़्तर में हर जगह उसकी रचनाएं थी
लिखावट से कभी ना थकती वो
दफ़्तर में उस से ज़्यादा इज़्ज़त उसकी रचनाओं को दिया जाता
जो हर बार उसके दिल को पर दे जाता
दफ़्तर में बैठे कुर्सी पर
देती पंख अपने ख़यालों को
दफ़्तर, उसके लिए एक ऐसी जगह थी
जहाँ उसके सोच पर कोई पाबंदी नहीं लगती थी
दफ़्तर उसके लिए सब कुछ था
घर, परिवार सब से दूर, दफ़्तर में ही उसका दिल लगता
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