व्यर्थ में तू हुँकार भर रहा षड्यंत्र ही षड्यंत्र हो रहा मौन हृदय सब सुन रहा है..... अस्थि मज्जा निष्चेत पड़ी है रक्त धारा देखो जम रही है ..... ये कैसा विलाप हो रहा है हाहाकार,प्रलाप हो रहा है.... असमंजस की स्थिति है... कोई नहीं संभाल रहा है सब अपनी गठरी बाँध रहे हैं दूजे को ठोकर मार रहे हैं लाशों के ढेर लग रहे हैं.. राजनीतिज्ञ रोटी सेंक रहे हैं बड़ा वीभत्स संसार हो रहा है