देर से पहुँचने की गलती को कुछ यूँ सुधारा जाता है, महबूब के लिए तोहफा एक प्यारा लिया जाता है , और एक बात से शायद तुम अब भी बेखबर हो, ये इश्क है, यहाँ वक्त को भी खरीद लिया जाता है
उदासियों के सिवा कुछ नहीं लिखने को ... खामोशियों के सिवा कुछ नहीं कहने को ... तोहफे भी क्या दूं मैं ,जो तुझे खुशी दे सके ... क्योंकि इस दिल में दर्द के सिवा कुछ नहीं देने को ...
आज जन्मदिन है उसका मगर हुस्ना ने तोहफ़े मांगना बंद कर दिया है। कहती है कि जो चाहिए, तुम एक चीज़ को छोड़कर सब मुझे दे चुके हो। ज़्यादा नहीं पूछा बस सोचा जो मेरी शक्ल देख कर समझ गई थी वो।
हुस्ना को कॉल पर जन्मदिन विश करके फ्लाइट में बैठकर हेडफोन का डब्बा खोला। "बस हो सके तो अगले जन्मदिन पर तोहफ़े में तुम्हारे बनाए हुए उस लकड़ी के डब्बे में फ़ुरसत को बंद करके ले आना।"
मेरी हुस्ना को चिट्ठी लिखना बहुत पसंद है। और मेरे अफ़सोस को उसकी चिट्ठी।