मैं नहीं जानती रोना, चिल्लाना, चीखना या फिर रोकना किसीको किसी के पैरों में गिरकर। हमदर्द है मेरा एक मेरे भीतर जो अश्कों को सोख लेता आफ़ताब(सूर्य) बनकर।
इतेफ़ाक से मिलते-मिलते जाने कब तुमसे 'वो मुलाक़ात' हो गयी, मुलाक़ात करते-करते जाने कब तुमसे 'वो बात' हो गयी बात होते-होते जाने कब तुम 'मेरे जज़्बात' हो गयी जज़्बात बनते-बनते जाने कब तुम मेरी 'हर रात' हो गयी
अब हर रात भी तुम हो ख़्वाब-ओ-ख़्यालात भी तुम हो
मेरी सारी ज़िन्दगानी मेरी रवानी मेरी कहानी भी तुम हो - साकेत गर्ग