तेरी मंज़िल का अब, हूँ राहगीर ही नही
रास्ता खरीद लूँ, इतना अमीर ही नही
जज़्बातों के दाँव से ही मिली है शिकस्त
रक़ीबों के पास कोई तदबीर ही नही
मुझसे वाबस्ता ख़्वाब तुम देखा न करो
मेरे हाथों में तुम्हारी लकीर ही नही
हसरतों के वास्ते क्यों हो जाएं नीलाम
अख़लाक़ रहे, हो जाएं फ़कीर ही सही
गुरबत में बदला है अंदाज़ रहबर ने भी
रहनुमाई में उसकी, अब तासीर ही नही
रूह को बेचकर ही जिस्म वो था हासिल
कर गए वो सौदा, जिनका ज़मीर ही नही
खुदी को बेचकर हो गए रईस वो,'राज',
रंग लाती है यहाँ फक़त तक़दीर ही नही
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