QUOTES ON #तारीख

#तारीख quotes

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8 APR 2021 AT 23:05

बहुत टलती रही है
तारीख़ .. लिखने की कविता
इंतज़ार ख़त्म नहीं होता
तारीख़ों से कलेण्डर बदल जाता है
कविता को किस का इंतज़ार है
ये मुझे नहीं मालूम
लेकिन मैं ये जानती हूँ .. कविता इंतज़ार में है
तारीख़ों के बदलने से पहले से
कविता रोज़ कलेण्डर के हर पन्ने को
दस दस बार पलटती है .. और लौट आती है
शुरुआत के पन्ने पर
साल दर साल .. कलेण्डर बदलते गए
तारीखें भी
कविता लेकिन बदली नहीं
एक एक शब्द संजोया उसने
जस का तस
इंतज़ार में तारीख़ के .. लिखने की कविता
अब कह लो तो कह लो
समय के हिसाब से जो नहीं बदलते
पीछे रह जाते है .. गुमनामी के किसी अंधेरे में
कविता सुनती सब है
लेकिन इंतज़ार में है
लिखने के .. कहे जाने के
और वो मरने से पहले तो
लिखी जाएगी कही जाएगी
ये वो जानती है

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7 DEC 2018 AT 7:04

हम तारीख से दीवार पर टंगे रह गए
और इश्क़ परवान चढ़ता गया,

हम ढूंढते रह गए दिन महीनों में उसको
वो सांसों में बसकर जान बनता गया ,

अहसास नादान थे हकीकत भूल बैठे
मान दे दी उसे वो नादान बनता गया,

तन्हाइयों के मारे रहे हैं हम कब से
जानकर भी वो अंजान बनता गया,

हम शीशा हो गए वो पत्थर ही रहा
वो चोट देकर भी हैरान बनता गया !

- दीप शिखा

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4 AUG 2017 AT 17:47

गमगीन और खुशमिजाज लम्हों को
समेट अपनी झोली में,

लो आ गया फिर वहीं तारीख
यादों भरी एक डोली में ।।

//तनहाइयाँ

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16 JUN 2021 AT 17:03

कविता.. को किसका इंतजार है..

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25 MAR 2020 AT 16:23

दशकों पहले जिसको सोचा, वो कोई अनजानी थी,
दरबदर मैं रहा भटकता, जर्रा जर्रा की तलाशी थी!

सावन रीते, बारिश बरसी, कितने पतझड़ गुजर गए,
वो ही एक नही मिली, जो मेरे मन की कल्पना थी!

पल पल बीते, बीते सालों, उम्मीद धूमिल होने लगी,
पर दिल बोला कि सब्र रख, वो यंही कंही होनी थी!

आँखे धुँधली हो रही, उम्र का तकाजा जब होने लगा,
सूरज हुआ मंदम-मंदम, पर उम्मीद फिर भी कायम थी!

हुआ फिर कुदरत का इशारा, धड़कन यूँ बढ़ने लगी
मैं अकेला नही इस जहां में, वो भी एक अकेली थी!

वो तारीख मुझे याद नही, पर तारीख बन के वो आई,
वो कर रही मेरा इंतजार, जिससे खुद अनभिज्ञ थी!

मिला जब मैं उससे पहली दफा, खुद को न इल्म हुआ,
पर हुआ जब इक़रार तो, पलकों में मोती भरती थी!

भले हम दूर हो या पास हो, पर एक दूजे के हिस्से हैं,
कुछ निशानी कुछ कहानी, अमरप्रेम की हम हस्ती थी!
___Mr Kashish

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26 JUN 2019 AT 9:05

बेवजह रूठ जाना तेरा मेरे मुकद्दर की तरह,
मान जाने की भी कोई तारीख मुकर्रर कर दो !

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19 MAY 2021 AT 15:47

इन तारीखों के भी क्या कहने,
किसी साल अपने साथ...
कुछ खास लेकर आती हैं,
और किसी साल,
खुद को खास तो क्या....
़़

आम भी नहीं रहने देतीं।

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29 NOV 2019 AT 6:31

हर तारीख, हर महीना, हर साल एक सा प्रतीत होता है।
समय कहीं ठहर गया है और मैं कहीं।

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29 FEB 2020 AT 13:59

मेरी ज़िंदगी के कैलेंडर की 29 फ़रवरी हो तुम।
वो तारीख़ जो आती है कभी कभी।

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7 JUL 2017 AT 11:07

दिन बदला
तारीख बदली
साल भी बदल गया
एक नहीं बदला तो मेरा
तुम्हारे लौट आने का खयाल

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