QUOTES ON #तवायफ़

#तवायफ़ quotes

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23 SEP 2017 AT 0:21

बेचती हूँ अपने जिस्म को महज रोटी के लिए।
सोती हूँ सैकड़ो के साथ घर चलाने के लिए।
न जाने क्यों ये दुनिया मुझे तवायफ़ बोलती है,
कभी कुछ भी तो नही किया हवस मिटाने के लिए।
ख़ुद की भूख मिटाने के लिए ज़माने को सुख दिया मैंने,
कभी नकाब नही पहना अपना सच छुपाने के लिए।
तुम क्या जानोगे मेरा दर्द, खून के आँसू रोती हूँ मैं भी,
कोई भी तो नही आता मुझे कभी चुप कराने के लिए।

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7 DEC 2020 AT 11:01


देह प्रेम

बात महज देह प्रेम तक था ,
मोहब्बत का फिर क्यूं नाम दे दिया
बेजुबां और मासूम से इश्क को ,
हाय तुमने बदनाम कर दिया
एक की क्यों जिक्र करूं जब दोनों भागीदार है,,,
क्या लड़की क्या लड़का , यहां दोनो गुनहगार है...
इश्क अब इश्क न रहा व्यापार हो गया है
चाहत किसी को रही नहीं किसी की ,,,
हर शख्स जिस्म की भूख का बीमार हो गया है...
न रही मोहब्बत न रहे मोहब्बत निभाने वाले,,,
मुखौटे के पिछे छिपे बैठे हैं जिस्म से दिल लगाने वाले...

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18 SEP 2018 AT 20:46

रंगकर्म भटक गयो जी तो समझो क़यामत है,
मोहब्बत तवायफ नहीं जो बाजार में बिके ये बड़ी मुश्किल से मिलती है !!

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9 MAY 2022 AT 8:23

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3 AUG 2018 AT 21:29

सुबह चूल्हा जलाने के लिए,
रात को शरीर जलाना पड़ता है।

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15 NOV 2017 AT 20:28

भूला दी मैं कल रात के जख्मो और यादों को,
आज फिर तो मेरे जिस्म को सरेआम बिकना है।

मेरे अलावा तो सब यहाँ सही होते।
बस तवायफों के आशिक नही होते।

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21 MAY 2020 AT 14:14

मेरी हसरतों का उन फरेबी फ़ितरतों से रूबरू होना,
जैसे जिस्म के बाज़ार में तवायफ़ सी आबरू होना।

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12 OCT 2021 AT 21:04

RED LIGHT AREA : - " एक अनदेखी-अनसमझी दुनिया "

बंघी पड़ी है ये घुंघरू की बेड़ियां , इस कोमल पांव में..
सजी रहेगी ये झुमरू की कोठियां , इस माथे की छांव में..

अजीब है ये नगरी , लिपटी हुई है दो संसार से..
एक ओर काम रूपी भावना , दूजे ओर देवी रूपी नारी के संस्कार से..

कभी स्नेह से पूजी गई थी , ये तन देवदासी के रूप में ..
आज काम भोग से निर्वस्त्र है , ये तन बेबसी के रूप में ..

अजीब है ये रास्ते गुलजार रहते हैं , काली अंधेरी रातों में ..
न चाहते बिक रहे हैं ये तन , कुछ पैसों की हसरतो में..

न जात देखी जाती यहां , न उच्च नीच की मोह माया है ..
कीमतों की बोली में लिपटी है ये आबरू , न जाने कितने यहाँ निर्भया है ..

न जाने कितने तहखाने यहां , अधूरी ख्वाहिशों का दरिया हैं ..
शराफत की चादर ओढ़े जिस्मफरोश , बुलाते इसे रेड लाइट एरिया हैं ..

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22 OCT 2017 AT 21:14

लिबास तवायफ़ के उतरे तो पान के बीड़ों के साथ ठहाके लग गये,
उतारने वाले हाथों का ज़िक्र कयामत के रोज करोगे क्या ??

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22 NOV 2017 AT 13:48

दस्तक जब रात में किवाड़ पर होती है,
इज़्ज़त के चूल्हे पर घर की रोटी सिकती है,
तुम्हारे लिए वो व्यापार का अपमानित खाना है,
पर मेरी बेटी उस रात भूखी नही सोती है! 
तवायफ़ हूँ साहब!
मुझे इज़्ज़त से महँगी रोटी मिलती है!

सुबह जिस्म मेरा दर्द से हर रोज़ टूटता है,
उसका हाथ स्तन के द्वारा दिल दबोचता है,
तुम्हारे लिए वो मेरे लिए लायक दर्द है,
पर फिर सुबह मेरी बेटी विद्यालय जाती है,
तवायफ़ हूँ साहब!
मुझे आज का दर्द उसके भविष्य से सहनीय लगता है!

हर रोज़, चेहरे पर एक कालिख मलती है,
ख़्वाब पैसे बन बिस्तर पर सजते है,
तुम्हारे लिए वो मेरे इज़्ज़त के टुकड़े है,
पर मेरी बेटी उससे नई पुस्तक में रंग भरती है!
तवायफ़ हूँ साहब!
उसकी खुशी मेरी आबरू से महंगी पड़ती है!

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