QUOTES ON #तवायफ़

#तवायफ़ quotes

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20 AUG 2017 AT 21:47

हाँ! मेरा घर नहीं है, कोठा बुलाते हैं
जगमगाती रोशनी के उस नुक्कड़ को “रेड लाइट" बताते हैं
दिन में देखा है जिन नज़रों को हिकारत से देखते हुए,
स्याह रातों में वो ही, मेले सी चहल पहल मचाते हैं
सलोनी सूरत, आँखों मे नूर बसा गज़रा सजाती हूँ
रेंगवाती हूँ छाती पे, कई दफ़े टांगो के बीच से लहू भी बहाती हूँ
बंद दरवाज़ों के पीछे, मेरी सिसकियों से जागती है मर्दानगी उसकी
मेरे कराहने और ‘गाली' तक से गर्मजोशी बेधड़क बढ़ जाती उसकी
मेरी चीखें, मेरी छटपटाहट सुन्न पड़ जाती है
“रानी है तू मेरी" शब्दों की दलाली क्या खूब रंग लाती है
भूख मिटाई है मैंने, कोख उजाड़ उजाड़ कर
बटोरें हैं हुस्न पर फिके पैसे, आबरू के पर्दे जला जला कर
हूँ खण्डहर अंदर से, बाहर से सजी हूँ दीवाली हो जैसै
कई बार दुल्हन भी बनी एक रात की, तलबग़ार नही हो मेरा प्रेमी हो जैसे
पैखाने सी जरूरत हूँ मैं ,जमाने के लिए
इस्तेमाल तो करेगें ही गंध मचाने के लिए
माना थूकेंगे, गंदगी बुला मुँह भी बिचकाएगें
पर जोर की तलब आने पर, जनाब और कहाँ जाएगें
है भीडं गंदगी की चारों तरफ मेरे, और हो हल्ला है कितनी गंदगी है भीड़ में
पर मैंने भी देखी है असलियत ‘सभ्य’ सोच की, मुखौटा जो गिर जाता है बिस्तर पर प्यास बुझाने में
वाकिफ़ हूँ मैं, सड़े केले सा हश्र है मेरा, जब बदन गल जाएगा
बस इक टीस मेरे मन की रही, जम़ीर बिकने का सफ़र अनसुना रह जाएगा

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28 APR 2018 AT 18:26

मीडिया
राजनीति के कोठे पर बैठी
वो तवायफ़ है
जो हर रोज़ बिका करती है

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25 MAR 2019 AT 10:25

घर टूट के बिखर जाते है अक्सर
मेरे घर चलाने की मजबूरी के नाम पर
मुलजिम बन, बदनाम होती हूं मैं,
आने वाले के बाइज्जत चले जाने के लिए
तवायफ हूं साहब, दूसरों के कर्मो के दाग,
अपने दामन पर लिए घूमती हूं!

अलग अलग नामों से बुलाई जाती हूं,
घृणा और तिरस्कार को ही हर जगह पाती हूं
खुश करती हूं दूसरों को हर रात दर्द सहकर
फिर अगले दिन सबकी नज़रों में फिर गिर जाती हूं
तवायफ हूं साहब, जिल्लत पी जाती हूं हर रात
सुबह का निवाला मुंह में निगलने के लिए!

करते नहीं है बात लोग मेरे बारे में ऐसे
पर बात बनाने के लिए तुरंत याद करते है वैसे
बैठी हूं यहां हर रात रोटी कमाने के लिए मैं,
आते क्यों है तेरे अपने रोज़ रोटी देने के लिए?
तवायफ हूं साहब, रोज़ जवाब देने उठती हूं,
मेरे सवालों को कोई जवाब न मिल पाने के लिए!

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10 MAR 2021 AT 15:05

यहाँ अकेले औरत को ही नहीं कहा गया तवायफ़
इस शख़्स को भी हवस का पुजारी पुकारा गया है

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19 JUL 2020 AT 16:29

वो तवायफ़
जो हर एक से प्यार कर लेती है लगता
है उससे किसी ने प्यार नहीं किया।

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18 MAR 2017 AT 10:21

तवायफ़
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तमाशबीन जिंदगी में,
नाम 'तवायफ़' मिली मुझे.

ना जाना किसी ने तकलीफें मेरी,
ना जाने कितनी मैंने दर्द़ सहीं.

हर घड़ी, हर वक्त जुल्म मुझ पर होती थी,
हर दर्द़ पर मैं छुप-छुप कर रोती थी.

था सपना मेरा भी, एक घर हो,
कोई प्यार करने वाला भी हो,
पर जी रही मैं अब जिल्लत भरी जिंदगी.

मेरी बदनाम जिंदगी में,
जब-जब लूटती इज़्जत मेरी थी,
इज्ज़त वालों खूब हंसते,
हर पल मैं रोती थी.

है इल्तज़ा मेरी इतनी तुमसे शरीफ़ज़ादों,
इस बदनाम शहर की मैं भी कभी,
इक इज़्जतदार बेटी थी.

तमाशबीन जिंदगी में,
नाम 'तवायफ़' मिली मुझे.

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18 APR 2020 AT 19:03

बदन का चोगा उतार खूंटी पे टांग आई
मिली थी चार रोटी , बच्चों में बांट आई

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8 DEC 2020 AT 20:28

काली रातों को मेलो सी चाहत है
जगमगाती खिड़कियों को रोशनी की आहत है,

रोनी सी सूरत पे इक श्रृंगार सजा लेती हूं
हा मैं तवायफ किसी की ज़िन्दगी भी सवार देती हूं।।

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तवायफ़ों को एक रात के
खिलोने समझनवालों से
दूनिया भर गयी है जालिम ।

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8 DEC 2020 AT 22:30

पीठ पे कोड़े भी खाई है
टांगो से लहू भी बहाई है

जब जागती है मर्दानगी उनकी
चारदीवारी मे बन्द रहती है सिसकियां हम सबकी

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