चलो आज ठहाकों की नाव बनाते हैं,,
उसे मस्ती की झील पर उतारते हैं...
कुछ खट्टे, कुछ मीठे चुटकुले
सूरज को सुनाते हैं,,
गुदगुदाते हुए पानी के वेग से,
हम फूलों संग मुस्काते हैं...
कभी पेड़, कभी पत्ते,
कभी हरियाली बताते हैं...
हम खेलते बच्चों की
मुस्कान की वजह बारिश बताते हैं...
थकती नहीं यह नाव हमारी,,
हम इसपर सवार हो,,
बादलों को टटोल आते हैं...
रूठ जाए ग़र साथी कोई,
तो उसे चाँद-तारे दिखा लाते हैं...
परियों के देश की हम
मुफ़्त में सैर कर आते हैं...
चलो आज ठहाकों की नाव बनाते हैं,,
उसे मस्ती की झील पर उतारते हैं...
कुछ रूठे हुए दोस्तों को
गुदगुदा कर आते हैं...
बिगड़ी हुई बात आज सारी,,
बना कर आते हैं....
ढूँढे जब कोई ग़म अगर तो,,
लुका-छिपी का खेल खिलाते हैं...
चलो आज ठहाकों की नाव बनाते हैं,,
उसे मस्ती की झील पर उतारते हैं...
©विक्की...📝
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