किसी भी विषय पर बात करने में यदि आप भयभीत होते हैं, असहज महसूस करते हैं, या उसके बारे में बात करने में झिझकते हैं और उसका सामना नहीं करना चाहते तो वो विषय आपके लिए "संवेदनशील" हो जाता है।
इसके पीछे प्रमुख कारण है कि जब आप किसी विषय पर बात करने लगते हैं तो उससे सम्बंधित आपके सभी आवरण उतरने लगते हैं और आपको अपने ही नग्न व सत्य स्वरूप का सामना करना पड़ता है, जो कि हम साधारणतया करने के बचते रहते हैं क्योंकि उससे हमें असहजता होती है, हमारे सभी भय प्रकट होने लगते हैं। उससे सम्बंधित हमारे सभी घाव खुलने लगते हैं। फिर हम किसी भी बात को केवल मानकर नहीं बैठ सकते, हमें उसके उत्तर का सामना करना पड़ता है। हम इन्ही सब से बचने के लिए स्वयं पर आवरण ओढ़ लेते हैं और उस विषय पर बात करने से बचने लगते हैं।
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