रंगों का बटवारा भी क्या खूब हो गया,
लाल हिन्दुओं का तो हरा मुसलमानों का हो गया।
और तो और तिलक और टोपी हिन्दू-मुस्लिम की पहचान हो गई।
भाषा को भी कहा छोड़ा है किसी ने,
हिंदी हिंदुओं की तो उर्दू मुसलमान की हो गई।
ऊपर वाला भी कहा बच पाया इन ठेकेदारों से,
भगवान हिन्दू तो अल्लाह मुस्लिम की शान हो गई।
मन्दिर मस्जिद में ही दिखती है थोड़ी इंसानियत
वरना बाहर तो हैवानियत इंसान की पहचान हो गई।
सूखे मेवा हो या फल वो भी बटे ऐसे की
नारियल हिन्दू का तो खजुर मुसलमान के हो गए।
ये तो परिंदे बचे है जो बच गए बटने से
वरना मोर हिन्दू और कबूतर भी मुसलमान हो जाता
और अपनी मर्ज़ी से पंख फैलाये कहा उड़ पाता!!
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