छोटी बच्चियों की सिसकियाँ देखते हैं
उनकी इज्ज़त लूटती उंगलियाँ देखते हैं
ज़ुल्म किसने किया सबको है इसकी ख़बर
फ़िर भी ज़ालिम जुर्म की निशानियाँ देखते हैं
चाहे नन्ही "ट्विंकल" हो या हो नन्ही "आसिफा"
ये ना लड़की, ना औरत, और ना बच्चियाँ देखते हैं
वहशीपन का इस कद्र अब ख़ुमार चढ़ा है इनको
ना ही किसी की इज्ज़त, ना ही परेशानियाँ देखते हैं
तिरा कुछ लेना-देना नहीं, तू दुनिया की चिंता छोड़
दूसरों की क्या, लोग बस अपनी ख़ुदगर्ज़ियाँ देखते हैं
कुछ तो ख़ुद भी अभी ढंग से बड़े हुए ही नहीं "आरिफ़"
फ़िर भी हम सब मिलकर उनकी ये नादानियाँ देखते हैं
इक बच्ची की आबरू को "कोरा काग़ज़" ही समझकर
जुर्म के हाथों से मिटती हम सिर्फ़ ख़ामोशियाँ देखते हैं
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