"तड़प" रहे हैं लोग,"बिलख" रही है उनकी आत्मा,
भीड़ वाली सड़कों पर "सन्नाटा" छाया हुआ है,
शहर बन रहा "लाशों का अंबार" है,
बस यहीं कहना चाहती हूं,
जहां तक हो सके एक दूसरे कि "मदद" कीजिए,
और ना किजिए "हुकूमत" से कोई उम्मीद,
क्यूंकि ये "जनता" कि चुनी हुई नहीं,
ये "अंधभक्तों" के द्वारा चुनी हुई
"अंधभक्तों की सरकार" है...!!!
(:--स्तुति)
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