अल्फ़ाज़ को अल्फ़ाज़ रहने दो,
दिल के ज़ज़्बात क्यों लिखते हो!
मगरूर हो,थोडी़ मगरूरी रहने दो,
दिल का दर्द क्यों लिखते हो!!
दर्द को छुपा रखो,किसी कोनें में,
चेहरें की तबस्सुम क्यों खोते हो!!
लिखोंगें जितना दिल का दर्द जहाँ,
वाह-वाही उतनी ही मिलेंगी वहाँ!
इतनी सदाकत भी अच्छी नहीं,
दिल का दर्द इतना क्यों सुनाते हो!!
वाह-वाही करने वालें अक़्सर फ़रेब कर ही जाते है,
तुम दिल के ज़ज़्बातों में अपना सुँकून क्यों खोते हो!!
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