गुजर रहे थे, राहगीरों ने मुझको टोका,
कदम चलते गए, दिल ने उसे नहीं रोका!
दरम्यां उनके हुए, खड़ी मिली चौखट पर,
आँखें बरस पड़ी, पलकों ने नहीं रोका!
मासूम चाँदनी में, खिल के मुस्कराने लगी,
मेघ मैं सावन का ,मुझ से ना गया रोका!
तलाश थी जिसकी सदियों से दर-ब-दर,
मिली जब मासूम, मेरी बांहों ने नहीं रोका!
जज्बातों की लहरे आंखों से बहने लगी,
रगो में मचलते खून ने आलिंगन से नहीं रोका!
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