तन्हा नहीं हूँ घर में मेरे यार चार हैं,
इक मैं हूँ और संग में दीवार चार हैं।
हाकिम ने मेरी छुट्टियाँ ये कह के काट दीं,
क्यों छुट्टी जब महीने में इतवार चार हैं।
हर बार क्यों हो ज़िन्दगी के पल की ख़्वाहिशें,
जब इन पलों की गिनतियाँ हर बार चार हैं।
किससे करे ये दिल मेरा उसकी शिकायतें,
चारों तरफ़ तो उसके तरफ़दार चार हैं।
फ़ुर्क़त, अज़ाब, याद, उदासी की शक़्ल में,
दिल के मुशायरे में कलाकार चार हैं।
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