हर चहेरा नक़ाब सा है पर मुश्किल हर जनाब है
हर रोज़ लिख रही हूं,पर खाली किताब सी हूं
अल्फ़ाज़ सारे पुराने से है पर धुंधली पहेचान है
दिख रही इंसान हूं, पर खुद की भगवान हूं
धीरे से चल रही हूं,पर लंबी सी उड़ान हूं
रिवाज़ हर ढल चुका सा है,नई मुस्कुराती आवाज़ सी हूं
हर किसी के सामने खुली हुई हूं,पर अंदर गहरा राज़ हूं
संभलने के लिए बेताब सी हूं,पर बिगड़ता हिसाब सी हूं
मुश्किल सी ज़िन्दगी हूं,पर महंगा सा ख्वाब हूं
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