..............घुसपैठिया............
सबका अपना बन सबको छलता है वो.
दिल के किसी कोने में बैठ,दिलों को भेद देता है वो
बात का बतंगड़ बना,नुमाइशें करता है
ये वो शक्स है जो घर-घर की टोह लेता है
सबके सामने होकर भी अदृश्य रहता है
सबका चहेता बन सबके दिलों में बसता है
पर उसके दिल में कहाँ कौन बसताहै
कहता कुछ,करता कुछ, दिल में कुछ,मन में कुछ,जहन में कुछ,
जाने क्या क्या उधेड़ बुन करता है
खामखाँ षड़यंत्रों के जाल बुनता है
अक्सर ढूँढता है अपना सा कोई अक्स आस-पास ही
अगर मिलता है उसको साथी कोई तो............
पंचायतें होती है
उनकी महफिलों में रिश्तों,बेबसी,मजबूरी
व जज्बातों की खिल्ली उड़ती है
क्योंकि हर दिल से उसको
कोई न कोई बात जरूर मिलती है
और किसी बात को बबाल बनाना उसे बखूबी आता है
क्यों कि..............
उसका दिल,दिमाग,पेट इसी खुराक से ऊर्जा पाता है
और वह दिन व दिन तरोताजा होकर
अपने चहरे की रौनक बड़ाता है
इसलिए दोस्तों सावधान रहना एसे घुसपैठियों से
क्योंकि ये कोई एलियन नहीं,रहता है इसी धरती पे
और वह छिपा रहता है हमारे ही हितैषियों में।।
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