कभी कभी जब
मुड़ कर देखती हूँ पीछे
अपने अतीत को,
तो यूँ महसूस होता है
की मैं नहीं हूँ वो लड़की,
जो कभी हुआ करती थी।
जैसे कि वो कोई दूसरा जन्म था,
यादें है सब धुँधली सी,
पर लगती हैं,
किसी दूसरे की;
जैसे कि रूह मेरी नयी हो
जो डाल दी गयी हो
किसी पुराने शरीर में;
जिसमें चिपकी रह गयीं हों,
कुछ यादें पिछले जनम की।
पुराने लोग मिलते हैं जब मुझसे
बड़ी गर्मजोशी से,
तो मैं एक चौड़ी सी मुस्कान के साथ
बस आगे बढ़ जाती हूँ,
शायद मेरा शरीर उन्हें पहचानता हो,
पर रूह इंकार करती है शनासाई से।
-Sarika Saxena
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