QUOTES ON #ख्याल

#ख्याल quotes

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31 JUL 2019 AT 20:54

बिच्छू

नदी की देह में झुरझुरी होती
उसके आँचल में सरकता है जब बिच्छू!

एक बड़ी लहर फेंकती है बिच्छू को किनारे
भुरभुरी रेत का झुरझुराना बिच्छू का डंक चुभना है

ये बिच्छू प्रेम हैं....
झुरझुरी तुम्हारा ख्याल

मेरे आँचल में प्रेम का सरकना
मेरी सम्पूर्ण सत्ता में सनसनी होना है

रात सरसरा रही है चुभा है मानो उसे डंक!
सन्नाटा खामोशी से दर्द को लील रहा है।

Soniya Bahukhandi

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22 APR 2019 AT 15:49

धरा की रौशनी को कर अंधेरा क्या मिला तुमको?
न माँगा एक तिनका भी ,हमेशा ही दिया तुमको।
फायदे में तुम अब अपने....इसकी हरियाली तो ना छीनो ,
तुम्हे खुश देख कर खुश है ये...इसकी खुशहाली तो न छीनो।
ना सोचो है ये कमज़ोर ....हमेशा सहती रहेगी.....
गर आ जाये अपनी पे ...तो मिटा देगी ये हर एक को।।
✍️राधा_राठौर♂

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1 FEB 2021 AT 20:49

कभी अरमान लिखता हूँ कभी पैगाम लिखता हूँ !!
मै अपने दिल की धड़कन को तुम्हारे नाम लिखता हूँ !!

जहाँ भी हो मिरी हमदम वहाँ से लौट आओ तुम !
तुम्हारे ही ख़यालों को सुबह-औ-शाम लिखता हूँ !!

न जाओ छोड़कर मुझको तुम्हारी याद आयेगी !
तुम्हारी याद में खुद पर नये इल्ज़ाम लिखता हूँ !!

कलम की नोंक के नीचे तिरा जो नाम आ जाये !
मुझे तुम माफ कर देना यही अंजाम लिखता हूँ !!

नज़र भर देख लूं तुमको नशे में डूब जाऊंगा !
यही मैं सोचकर तुमको नशीला जाम लिखता हूँ !!

नही कृष्णा खबर कोई तिरे बदनाम होने की !
करे बदनाम जो तुमको उसे बदनाम लिखता हूँ !!

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3 DEC 2018 AT 19:45

न ख्यालों की आजादी
न ख्यालों में आजादी
न ख्यालों से आजादी

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28 JUN 2020 AT 8:48

चाय की मिठास
'मीठी' है
'प्रेम' की तरह
'सस्ती' हुई है चीनी
या फिर.. तुम्हारा कुछ
'असर' है इसमें...

सोचकर पीता हूँ
तुम्हे अक्सर...
चाय के साथ
की कुछ 'कम' नही
थोड़ा भी 'असर'
होने देते है मुझपर
ये 'ख्याल' तुम्हारे
तुम्हारी 'मौजूदगी' का

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24 MAY 2021 AT 23:49

सूखे दरख्रो को देखकर नाखुश जो हैं तू, तुझे किसने ठगा हैं?
देख मन्नतों के धागों से ये आज भी ये मुरादे पूरी करने में लगा हैं।

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__मेरी यादें जियारत करतीं रही मुसलसल हिचकियाँ बनकर,,
कमबख़्त महबूब भी ठहरा sceine का,अफवाहों में उड़ा देता !!

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3 AUG 2020 AT 9:21

इक उदासी है थकी-थकी
इक ख़्याल है तरो-ताजा सा,

कल तेरा नाम होंठों पे आ गया
मैं जाने क्यूँ सारी रात जागा था,

पलकों पे अभी भी हैं तेरी निशानियां
इक आँसु अभी भी है आधा सा,

यूँ लगे आजकल ज़िन्दगी
जैसे गाँठ में उलझा धागा सा,

ना चाहकर भी तुझे जीना ही है
ज़िन्दगी ऐसा तुझसे तो कोई ना वादा था,

जाने यह लंबे मोड़ कहाँ से आ गये
"अशोक" तेरा सफऱ तो सीधा-साधा था..!

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14 APR 2022 AT 16:39

"जाने क्या यथार्थ होगा... जाने क्या स्वार्थ होगा
या जाने कोमल ह्र्दय की.. कितनी ठोस व्यथा होगी...
या फ़िर अपनत्व को पाने की दुविधा में...
शायद यह अनिवार्य होगा...
के किसी पतिव्रता स्त्री का परपुरुष के प्रेम में पड़ जाना,

औऱ जाने क्या कमीं होगी... जाने क्या अलग होगा...
बसनायुक्त होगा मन या निस्सार सा अन्तर्मन...
या फ़िर रूह की अंतिम तह तक जाने की चाह में...
शायद यह जरूरी होगा...
के किसी विवाहित पुरूष का परस्त्री से संबंध बना लेना"
क्या पता, जाने क्या यथार्थ होगा!!

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25 FEB 2022 AT 19:28

अंधेरा घना घनघोर छा गया
बढ़ गया तन्हाईयों का वेग सा
यह मेरी ख्वाइशों की जमीं पर
किसने छोड़ा है अश्वमेघ सा,

यह कौन भीतर आ गया
मेरी उदासियों की सरहदें लाँघकर
....बेरहम सा यह कौन है
जो निर्मम सा मुझे है विच्छेदता,

मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा बैठा हूँ
सोचूँ.. यह कौन.. क्यूँ...
...मेरा अन्तर्मन है भेदता,
हाय.. यह किसके तरकस का तीर है
जो मेरे ह्रदय के पटल है कुरेदता,

अंधेरा.. घना घनघोर है छा गया!

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