मुस्कुराती हुई सुबह से जब दिन का आगाज़ हो,
तो जिंदगी यूं लगे कोई खुशनुमा सा साज हो।
सुकून की परछाइयां ऑंखों में छिटकने लगें,
आसमां तक फैली हुई ख्वाबों की परवाज़ हो ।
कल्ब में राहत-ए-दौर चल रहा हो और ,
इश्रत-ए-इश्राक हो तबियत गमों की नासाज़ हो।
मन-मयूर नाच उठे और होंठ लगे गुनगुनाने,
खुदा करे कि हर रोज यही जीने का अंदाज़ हो।
मौज़-ए-नशात धीरे-धीरे तन-बदन में उतर जाए,
लगता है मानो जैसे तकदीर का कोई एजाज़ हो।
गर्दिश-ए-अय्याम बीत जाए इब्तिसाम का आलम हो,
और होंठों पर थमे-थमे बस सुकून भरे अल्फ़ाज़ हों।
.......... निशि ..🍁🍁
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