बुत से उम्मीद लगा बैठे थे.. खामखा ख्वाब सजा बैठे थे। था दिल फरेब आंखों में चुभ गया एक दिन.. जिसको इस दिल का अरमान बना बैठे थे। अपने ही फैसले का हासिल है हर नतिजा... अश्कों को आंखों का मेहमान बना बैठे थे। कभी तो होगी इक दिन मुलाकात उनसे.. तमन्रा जाने क्यों दिल के बहकावे मे रहते थे।
तुम अक्सर पूछते हो मुझसे। लिखने के लिए शब्द कहां से लाती हो। दिल में लिखने के लिए जज़्बात होने चाहिए। और जज़्बातों को बयान करने के लिए ख्यालात होने चाहिए। पंक्तियां तो खुद ब खुद बन जाती हैं।