दिल कुछ ऐसा टूटा है ,, अब लगे की रब ही रूठा है।
जी करता है धूनी रमा लू,, जाके यूं एकांत में ।
दुख ना हो उम्मीदों से ,, और मोह ना हो इस पाश की।
भस्म बने ये सारी काया ,, अंत हो सारी पीड़ा का ।
खो जाए सतरंगी सपने,, नीले इस आकाश में।
नहीं पता क्या भूल हुई थी ,,जन्मों के इतिहास में।
चुका रही हूं स्वश्रुओं से ,,बाकी जितने भाग्य में।
किन पापों की बलि चढ़ गए ,, जीवन सारे पल।
अपने मन के क्रंदन की ही,, गूंज सुनूं आकाश ।
---संजीवनी
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