जो टूटा ना हो, तो वो दिल कैसा ? जो उलझी ना हो, तो वो जिंदगी कैसी ? जो रोया ना तु, तो वो ग़म कैसा ? जो आंखों में चमक ना हो, तो वो हंसी कैसी ? जो ख़्वाब को अपने तु मुक्कमल न कर पाए, तो वो ख़्वाब कैसा ?
एक नये पद्य के साथ, .....उसमें, यह विश्राम कैसा। तेरे हर शब्दों में, जीवन का दर्दे विलाप है, उस दर्द में, यह विश्राम कैसा। उनके लबों के, मालिकाना हक में, अनकहे शब्दों का, यह विश्राम कैसा।
अगर जल्दी पूरा हो जाए तो वो सफर कैसा और जो देर से हो वो असर कैसा जो देर तक रुक जाए वो मेंहमान कैसा और जहाँ चैन ना हो वो समसान कैसा जहा भीड़ ना हो वो मेला कैसा और जिसके साथ तू है वो अकेला कैसा जो जल्दी पूरा हो जाए वो सपना कैसा और जो देर से मिले फिर वो अपना कैसा जो सब कुछ समझ गया वो परेशान कैसा और जिसको तुजपर भरोसा हो फिर वो हैरान कैसा जिसे सब कुछ मिल गया वो इंसान कैसा और जो कुछ ना दे सके फिर वो भगवान कैसा