QUOTES ON #कुपित

#कुपित quotes

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13 OCT 2020 AT 21:25

मैं....भी तेरे जैसी हूँ...!

ए धरा...
कुछ कुछ मैं भी
तेरे जैसी ही हूँ
सहती हूँ
बहुत कुछ
कम कहती हूँ ...
जज़्ब कर जाती हूँ
अक्सर...
झूठे सच्चे
कई तरह के फ़लसफ़े
मौन रहकर
अक्सर ...मैं
चुप ही तो
रहती हूँ...!!

जब कहती हूँ ...
तब...सुनती कब हूँ
ए धरा...
बस तेरी तरह
सब पलट देती हूँ
मैं भी
तेरे जैसी हूँ...!

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1 SEP 2021 AT 23:16

#सेदोका #

नृत्य करती
मेरी पत्ती शाखाये
कुपित जन मन
मानव स्वार्थ
उजड़ा तन मन
संतुलन विध्वंस

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उन्मादी अमेरिका,
कुपित ईरान
और
चकित दुनिया।।

😢विश्वशांति पर संकट😢

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17 OCT 2020 AT 10:57

सबसे ज्यादा दुखी होता है
कुपित मन
न किसी से कुछ कहना
चुपचाप अंदर ही अंदर
घुटन से मरना

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7 JUL 2021 AT 12:23

धुआं धुआं भरा है मन में
सांसे मेरी फूल रही हैं
मन कसैला और मैं कुपित हूँ
उपेक्षा और तिरस्कार से
सांसे मेरी शूल हुई हैं


मै गँवार, अज्ञानी, जड़
बस प्रेम ही समझ सका हूँ
क्या जानू विद्वेष की बातें
विश्रब्ध हूँ, कातरता की
बातें मुझको कोंच रही हैं

विश्रब्ध : विश्वशनीय, शांत, निडर, निर्भीक, दृढ़,धीर
विद्वेष : ईर्ष्या, डाह, कुढ़न , जलन

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7 MAR 2017 AT 6:29

The purity of Heart often signifies You! as a Naive

आज भी जियूँ मैं शब्द सिंचित...
फिर क्यूँ हो गये!अब मेरे स्वर किंचित...

न कुंठित हूँ...
न भयभीत मैं!
थोड़ा सा हो गया, बस अर्धमूर्छित!

किये चिन्हित,मेरे नेक विचारों को
किया शब्दों में भी,वो!खूब वर्णित
सराहा भी हर सूक्ष्म प्रयासों को
देकर सलाम इस नादान बालक को
वो कर गये थे!कुछ यूँ महिमामंडित

फिर क्यूँ मिलता,मेरे आसंग को
टुटा डोर वही और मेरे रंजित फिर से खंडित!!!

माना सब महान हैं...
उनकी अपनी जहां है...
मैं भी तो इस जहां का वासी...
फिर मेरा कहाँ निशां है!!!!

फिर करना क्या!कुपित मैं बोल उठा...
लो जियो मुर्ख!
लेकर फिर से,वैसा ही कुछ अंजाम अर्जित
वो क्यूँ ! समझ नहीं पाते हैं
मेरा उद्देश्य नहीं,होना चर्चित...
कर किसी को आहत मूर्छित

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11 MAR 2021 AT 21:49

मैं अपनी उम्मीदों पर दोष मढ़ना चाहती हूं,
फिर से एक नया जीवन गढ़ना चाहती हूं।
मेरा भाग्य मेरे ही श्राप से कुपित हो गया है,
मैं इस दुर्भाग्य को बदलना चाहती हूं।

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14 JUN 2020 AT 18:24

क्षुब्ध
.........
गर हृदय की पीर को मिल जाए स्याही..
या कोई हो कुपित और बन जाए राही,
दोनों की फिर थाह ना तुम पा सकोगे,
ना समझ पाओगे लेखन का प्रयोजन....
ना ही सहेतुक, पदचाप पीछे जा सकोगे।।

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2 SEP 2021 AT 18:14

पर्ण-विहीन,
खड़ा कंकाल सम,
निश्चल निरुपाय।
था हरा भरा,
सुखी पक्षी पथिक
हुआ वो इतिहास।

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