कामचोर
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कामचोर सड़ सड़ मरता हैं, जीवन जाता है बेकार।
मन का सब मन में जाता है, मरता है जब हाथ पसार।।
कामचोर का भाग्य न बदले, और दु:ख पाता दिन रात।
तानें खाकर के पेट भरे, होती लातों की औकात।।
कहे निर्लज्ज दुनिया उसको, हर कोई करता अपमान।
आँखो में सबकी वह चुभता, पैरों में पाता फिर स्थान।।
कामचोर हो जो चोर बने, कुल को करता वह बदनाम।
खोटी नीयत से खोट करे, कर करके फिर खोटे काम।।
विनाश को खुद गले लगाकर, उजाड़े स्वयं अपना घर-बाग।
मात-पिता का नाम निकाले, लगाकर वंश को वह दाग।।
चोरी से बुरी काम चोरी, हैं बुरे सबसे कामचोर।
हाँ नजर सब इन पर राखिए, कब कर बैठे काम घोर।।
@ गोपाल 'सौम्य सरल'
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