नज़रंदाज़ भी करता है , नज़र भी रखता है
वो इन दिनों मेरी , कुछ यूँ भी ख़बर रखता है
न जाने कैसी मुहब्बत है , उस सितमगर की,
जान ले लेता है , जिंदा भी मगर रखता है ;
रोज खाता है कसम , अब न इधर आऊँगा ,
मेरे ही कूचे में , लेकिन वो गुज़र रखता है ;
उसी के आने से बदलते हैं आजकल मौसम ,
वो अपनी नज़रों में इतना तो असर रखता है ...
-