प्राणिजगत में अंग भी मुखर हो उठते हैं। दाँत बजते हैं, हड्डी चटखती है, कान पटपटाते हैं, उँगलियाँ चटकती हैं या पुटुकती हैं, हाथों से ताली बजती है, उँगलियों से चुटकी, पद-चाप प्रसिद्ध ही है, पेट गुड़गुड़ाता है, हृदय धड़कता है, नाक घर्र-घर्र बजती है, कान सनसनाता है।
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