आसमांन पे छाऐ है आज़ बादल अंगिन्त क्यो जैसे आवाज़ हो वो,जिनकी राय नही है आज़ क्यो..
बरसो जो एक दिन मुझपे कभी, हो जाउंगा मै भी कवी वो गीत जो सारे,अभी नही कही हो जाएंगे अमर वो सारे कभी यू हार कर तुम वो बादल सभी चमकवादो सितारा उस आसमांन पर,मेरा कभी..
Mai khuda nahi, ek choti si hasti hun... Aasmaan mai nahi, Tujhe me basti hun ... Mat dhoondh mujhe yahan vahan, Mat, dhoondh mujhe yahan vahan Teri ruh mein he toh, Mai sajti hun...
बंधना नहीं चाहती मैं किसी भी बंधन में खुद अपने बंधन भी नहीं है स्वीकार मुझे
कर रहे है जतन जो लोग मुझे बाँधने का पूछो इस बंधन से ऐसा क्या दे पाएंगे मुझे आज़ाद पंछी हूँ मैं इस मदमस्त गगन की क़ैद करके कौनसा आसमान दे पाएंगे मुझे पहाड़ों को चीर के ये घाटियां बनाई है मैंने बाँध भला सागर मिलन से क्या रोकेंगे मुझे जला जला के बनाओ महल मेरी राख़ पे ज़र्रे ज़र्रे में उगने से कैसे रोक पाओगे मुझे खुद को भी लाख पहरों के पीछे छुपा लो हवा हूँ छूकर गुज़रने से कैसे रोकोगे मुझे बांध इस काया में जी लो आखिरी दम तक रूह हूँ मैं कब तक रख लोगे अपनेे संग मुझे
बंधना नहीं चाहती मैं किसी भी बंधन में खुद अपने बंधन भी नहीं है स्वीकार मुझे