आफिस-आफिस !
सुन लो मेरे दफ़्तरो !
तमीज़ रखना कुछ मुझ से भी,
मैं तुमसे नहीं,तुम मुझसे हो,
काग़जो़ में अपने,लिख लेना कहीं ।
मैं अपना वक्त़ तुम्हें देता हूं,
तुम देते हो,दो जून की रोटी,
मैं वक्त़ का मारा हूं, मुझे वक्त़ चाहिए,
नहीं चाहिए रोटी ।
मैं बंद दस्तावेज़ नहीं
आलमारी का तेरी,
वक्त़ करे तो भले करे,
नहीं चलेगी पाबंदी तेरी ।
काम से काम,दूर से सलाम,
बस इतना सा है तेरा-मेरा नाता,
तेरी ब्रीफकेस में बंद हो जाना,
मुझको है नहीं भाता ।
माना तेरा काम निभाना,
है जिम्मेदारी मेरी,
जीने दे थोड़ी ज़िन्दगी मुझे भी,
ये है जिम्मेदारी तेरी ।
ये है जिम्मेदारी तेरी ।।
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