रहने दे ऐ रकीब कुछ और बात कर,
आकर मेरे करीब कुछ और बात कर!
माना कि तू खुदा है पर है तो बेवफा,
ये है मेरा नसीब कुछ और बात कर..!
कहने को है जहां पर साथ कौन है?
ऐसा मैं बदनसीब कुछ और बात कर..!
कहता है ये जहां मोहसिन उसे मगर,
दिल से है वो गरीब कुछ और बात कर.!
कुछ तो ज़रूर है उल्फ़त में भी असर,
बन जाते हैं अदीब कुछ और बात कर..!
दुनिया ने क्या दिया है सच को सोचना?
वहशत भरी सलीब कुछ और बात कर.!
फुर्सत से हाले-दिल कहना कभी स्वतंत्र,
है हादसा अजीब कुछ और बात कर ..!
सिद्धार्थ मिश्र
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