कूछ पल की जिंदगानी,
जब हम सबको है बितानी।
तो किसी की आँखों में लाकर पानी,
भला तुम क्या पाओगे।।
कभी हँसना, कभी रोना,
कूछ पाना तो कूछ खोना।
यूँ रोने-खोने को सोचते रहने से,
भला तुम क्या पाओगे।।
माना सच है, ये झूठ नहीं
सब साथ हैं, यहीं-कहीं।
पर मेरे-तुम्हारे भीड़ में,
खुद को अकेला ही पाओगे।
भला तुम क्या पाओगे।।
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