हे घना अंधेरा, और कितना हमें डराएगा, कोई रहबर नहीं है, जो तेरे साथ गुफ्तगू करेगा, वक्त की तरह ही, तु भी तो कभी ढलेगा, मेरी दास्तां न सुन, मेरे जख्मों को तु क्या भरेगा ?
मेरे काँटों को कर दे तू मेरे हवाले... मेरी सारी खुशियों का काफिला मैं सिर्फ तेरे नाम करता हूँ... तुझे ये बात समझ आये न आये .. मैं आज भी तुमसे बेइंतहां प्यार करता हूँ।