तितली सा सुंदर जीवन
पऱ सब हैं चार दिनों के रंग,
ख़ुश्बू सी हैं खवाईशें
औऱ कांटे हैं.. फूलों के संग,
ख़िलने में महीने बीत गये
ख़िल के जिये.. दिन चार,
साथ में सुन्दर थी पंखुड़ियां
बिखरीं तो लगीं.. बेकार,
माली बैठा रह गया
कर नां पाया चयन,
उम्र गुजारी जिस बगिया में
उसे ही उजड़ते देखें.. नयन,
ख़ाली हाथ में ले कटोरा
दर-दर.. भिक्षु मांगे भीख,
कितना चाहिये जीने को
देने बाले.. कुछ तो सीख..!
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