कितने बिस्तरों में,
उसके निशाँ मिले हैं....
एक वो है जो हर रात,
दुल्हन बनती हैं.....
हर रात उसके ज़िस्म का,
सौदा होता हैं......
क्या करें साहब वो,
मजबूर है अपने पेट की खातिर.....
पेट की आग बुझाने से पहले,
बुझाती हैं उन शरीफो के वहशियत को....
उनके चंद सिक्कों की खनक के खातिर,
उसे होना पड़ता है बर्बाद हर रात.....
मजबूर हैं, मज़लूम हैं साहब वो,
यही कहानी हैं उसकी हर रात.....
तवायफ़ है वो जो मिटाती हैं,
लोगो की हवस हर रात.....!
-