मैं !
मैं प्रभात हूँ,
मैं दीप्त हूँ,
हाँ ! मैं दीप्त हूँ,अभी प्रारंभ का |
मैं प्रगाढ़ हूँ धीरता का |
मैं सरस हूँ संवेदनाओं का |
और प्रखर हूँ उत्तेजनाओं का|
यूँ बाह्य मुझमें झांकोगे उलझ जाओगे |
मैं कुटिल हूँ और स्वार्थ भी मुझमें |
मैं जटिल हूँ और अनाविल भी मुझमें|
मैं उभयभाव हूँ,
जो मुझे समझोगे तो उलझ जाओगे |
मैं आशुतोष हूँ खुद में संतोष हूँ |
मैं प्रभात हूँ और अभी उदय में हूँ |
बस इतना सा है परिचय मेरा,
शायद ! तुम समझ जाओगे |
या फिर उलझ जाओगे |
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