.......नारी.....
तुमने पल पल उसको मारा है । उसके जज़्बे को कैसे मिटाओगे ।
वो जलती अखण्ड ज्योति सी, कहो कैसे उसको बुझाओगे।
कभी जिंदा जलाया उसे, तो कभी तेजाब उसपर फेंक दिया।
कभी जिस्म का बाजार समझा उसे।कभी सन्नाटे में उसको छेड़ दिया।
पर वो रूप है अम्बा दुर्गा की, उसे डरा ना पाओगे।
वो प्रारब्ध है माता सीता सा, कहो कैसे उसपर दाग लगाओगे।
छोड़ो तुम रहने दो, ये तुम्हारे बस की बात नहीं।
तुम लड़की हो। तुम शांत रहो। ये तुम्हारे मतलब की बात नहीं
वो प्रकाश पुंज है सूरज का, तुम उसको रोक न पाओगे।
वो नारी अदम्य शक्ति सी कहो कैसे उसको मिटाओगे।
घर से बाहर निकले जो वो, फब्तियों की बौछार चलाते हो।
बस में अकेला पाकर उसे, इधर-उधर हाथ लगाते हो।
खुद की रंगरलियों पर भी "उसको" ही मर्यादा का पाठ पढ़ाओगे।
गाली देकर हज़ार उसे, अब उसको ही इज्जत कऱना सिखाओगे।
बंदिशे लगाकर हज़ार उसपर, पिंजरे का कैदी बनाते हो।
दारू सिगरेट तुम भी पीते, पर उसका चरित्र समझाते हो।
वो नारी जड़ है चेतना की, तुम उसको काट ना पाओगे....
...वो बहती अविरल जल गंगा सी,...
कहो कैसे उसको अपवित्र बनाओगे।
-