हमेशा उनकी सलामती की अर्ज़ियाँ करते रहे ,
ख़ुदा से सिर्फ़ उनके लिए नमाज़ियाँ करते रहे।।
जिसने हर दफ़ा अश्क़ों से तर की मिज्गाँ मिरी ,
हम उनके लिए भी दिल - नवाज़ियाँ करते रहे ।।
सबकुछ लुटा दिया उनकी सोहबत की ख़ातिर ,
कमज़ोरी जान मिरी वो खुदगर्ज़ियाँ करते रहे ।।
नज़रें झुकाई महफ़िल में उन्होंने हर बार मिरी ,
हम बेवज़ह इस यारी पर सर्फ़रज़ियाँ करते रहे।।
दर्द-ए-यार बाँटने की फ़ुर्सत ही नहीं थी उनको ,
वो महफ़िलों में मश़गूल गमज़ियाँ करते रहे ।।
नफ़ा नज़र ही नहीं आया उनको मिरी यारी में ,
वक़्त बेवक़्त वो बस फ़िक्र-ए-ज़ियाँ करते रहे ।।
ताउम्र साथ निभाने की चाहतें रखी "फ़लक",
वो छोड़कर जाने की जल्दबाज़ियाँ करते रहे ।।
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