कुछ झूठ उसने कहे, कुछ सच हमने छुपाये, छुपने छिपाने के खेल में, ना जाने किसकी जीत हुई और किसकी हार, इतना जरूर समझ आया, खेल खेल के इस खेल में, खुद को ही उसी के खेलों में खोते हुए पाया मैंने।
सुनो जानाँ! मां-बाप से बढ़कर नही दुनिया में कोई और; दरख्तों की गली से..न गुजरना पड़े हमें! शर्म-ओ-हया को ताक पर न रखना तुम एक दिन! ऐसा न हो कि सिर को झुकाना पड़े हमें!
मुश्किल नही होगा सफर..ये जिन्दगी का है, फिर चाहे कुछ भी उनके लिए..करना पड़े हमें! मिलकर हज़ार ख्वाब देखेंगे सदी तक, उनके लिए तो चाहे...बिछड़ना पड़े हमें!
पढ़ा है मैने तुम्हारी आंखे जो कहती हैं, कभी लफंगा तो कभी बद्तमीज कहती हैं। बद्तमीजी मे जो मजा है वो ये लोग नही जानते, तुम्हारे हंसते हुए चेहरे की कीमत नही पहचानते। सुनूंगा हर बात तुम्हारा दिल जो कहता है, क्यूँ कहती हो ये दिल शोर बहुत करता है।