क्यों है कुछ शब्द, निशब्द से..
नाच उठते हैं निमित्त ही कभी सुंदर आकृतियों मे;
और कभी मौन हो जाए टूटे सितार के तार सा..
मेरे यह शब्द, निशब्द से..।।
सुंदर पंख लगाके अम्बर को तो छूना चाहें ;
पर धुभक के बैठ जाये, बिखरने के डर से..
मेरे यह शब्द, निशब्द से..।।
आतुर तो है, छूने को इन अधिरो को;
लौट जाएं उल्टे पाँव ही, हृदय के कण से कोनो में..
मेरे यह शब्द, निशब्द से..।।
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