ये कविता,
जो तुम पढ़ रहे हो अभी,
या वो कविता,
जो तुमने पढ़ी थी कभी,
यदि उसे तुम इससे बेहतर कहते हो,
या इसे तुम उससे बेहतर कहते हो,
तो प्यारे पाठक तुम सरासर ग़लत हो,
क्योंकि हर कविता में दफ़्न होती है,
भावनाओं की लाश,
हर कविता से पहले निकलता है,
जज़्बातों का जनाज़ा,
और लाचारियों की लाश को,
आक्रोश की मुखाग्नि देकर,
बनती है "कविता",
-